मानव मात्र को अपने अस्तित्व को सही जानकारी प्रदान कर उन्हे सच्चे माने में मानव कहलाने का गौरव प्राप्त कराने वाले कई महान सन्तों एवं कवियों ने इस पावन तपोभूमि भारत वर्ष अवतार लेकर अपने आपको धन्य समझा है। ऐसे ही महान संतो में स्वामी हरिहरानन्द त्यागी योगीराज भी एक है।
स्वामी हरिहरानन्द त्यागी का जन्म 3 मार्च 1948 को श्री कन्हैयालाल जी दयालू की धर्म पत्नि श्रीमति नाथी देवी की कोख से ग्राम मेई खुर्द तहसील-खण्डार, जिला-सवाई माधोपुर, (राजस्थान) में एक सभ्य तथा शिक्षित परिवार में हुआ। तब आपकी आयु 18 महिनें की थी तभी ग्राम खुर्द में आपके पिताश्री की कृषि योग्य भूमि में से रास्ता निकालनें को लेकर भारी संघर्ष छिड गया। आपके पिताश्री ने यहां रहना उचित नहीं समझा। ऐसी स्थिति में आपका परिवार अवन्तिका नगरी, उज्जैन म.प्र. में स्थित बागपुर नामक मोहल्ला में आकर निवास करने लगे। आपकी शिक्षा दीक्षा भी उसी पावन पवित्र नगरी अवन्तिका नगरी में हुई। आप बचपन से ही तीव्र बुद्धि तथा हंसमुख स्वभाव के धनी थे। आपके निवास पर पिताश्री द्वारा प्रत्येक शनिवार को सतसंग का आयोजन किया जाता था। जिसके परिणाम स्वरूप विद्वानों तथा महान संतों की सेवा के प्रति भी आपमें श्रद्धा पैदा हो गई एक दिन दूर कोटा में बहने वाली चम्बल नदी पर अचानक स्वामी हितानन्द जी त्यागी से भेंट हो गई तथा अपने साथ ले गये।
आपको नाम देकर प्रदान शिष्य बना लिया तथा अपनी शरण में लेकर आपको स्वामी जी ने योग अष्टागों की समाधी तक का ज्ञान प्रदान करने के लिए चुना। तथा तीन वर्ष की अल्पावधि में ही आपको गहन अभ्यास करवाकर समाधी की क्रिया में निपूर्ण बना दिया आपको स्वामीजी के नेतृत्व मे 21 दिवसीय जल समाधी भी सफलतापूर्वक लगाई स्वामी जी ने इस कठिन समाधी एंव तपस्या से प्रसन्न होकर आपका नाम हरिहरानन्द त्यागी योगीराज रख दिया। आप स्वामी जी के आदेश पाकर विभिन्न जिलों में तथा गांवो में भ्रमण करते हुए मानवता वादी विचारधारा का प्रचार-प्रसार करते रहे। अकस्मात एक दिन ग्राम हनौतियां तह. निवाई में 1973 में मां शिव रात्रि के दिन श्री रामनाथ जी बैंडवाल के यहां एक भव्य सतसंग के आयोजन में सम्मिलित हुयें जब से आपकों हरिहरान्नद न्यागी कें नाम से जानने लगें। आपको जगह-जगह गांव में सतसंग का आयोजन करकें ज्ञान प्रचार करके समाज की कुरीतियों को नष्ट करके ज्ञान ज्योति जगायी।
आपने तहसील चाकसू में एक विशाल सूर्य महायज्ञ सफलता पूर्वक करवाया तथा वहा पर 11 दिन की समाधि सफलता पुर्वक लगाई। इनके अलावा ऋषिकेश, जूनागढ म.प्र., महुआ राज., दिल्ली में 9 से 13 दिन तक भूमिगत समाधि सफलता पूर्वक लगाई। स्वामी हरिहरानन्द सफल योगी नही अपितु महान प्रकान्ड विद्धान, योग सम्राट, महान योगी, विद्धान, परम त्यागी, सिद्ध पुरूष साबित हुये। आपके तपोमय व्यक्तित्व से अगणित लोगों को सदमार्ग की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा मिली है और आज भी मिलती है और मिलती रहैगी।