बैरवा सन्तशिरोमणि महाऋषि बालीनाथ जी महाराज

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सन्त शिरोमणी महर्षि बाली नाथ जी महाराज

जन्म स्थान- ग्राम - मण्डावरी, तहसील-लालसोट, जिला- दौसा

जन्म तिथि- 9 मार्च फाल्गुतन सुदी सप्तमी सन 1926 (सन 1869)

नामकरण- नन्दराम

पिता माता- श्री किशनाराम जी बैरवा (बैण्डवाल गौत्र) एंव श्रीमती सुन्दरबाई मध्यमवर्गाीय किसान परिवार

प्रांरभिक जीवन-

गाँव में पाठशाला के अभाव में अध्ययन नहीं कर सकें, किन्तु आदर्श जीवन के लिए जिस सच्चित्रता की आवश्यकता थी वह बचपन से ही प्राप्त कर रहे थे।

विवाह-

किशनाराम जी की पहली सन्तान होने के कारण मात्र 10 वर्ष की आयु में सगाई एवं बंशीपाडा (गंगापुर सिटी) की बैरवा कन्या चम्पाबाई से सन 1882 में 13 वर्ष की आयु में विवाह।

जीवन गाथा-

विवाहोपरान्त राजस्थान में फेली महामारी में माता श्रीमती सुन्दरबाई का देहान्त तथा एक वर्ष बाद ही पिताजी का देहान्त। घर की खेती बाडी का सारा भार नाजुक कन्धों पर आ गया। किन्तु उनका ध्यान किसी दिव्य स्वप्न को साकार करने मे तथा अध्यात्म प्राप्ति में था, अतः गाँव में आए हुए एक गंगागुरू के साथ सौरोंजी (उ. प्रदेश) प्रस्थान।

कुम्भ मेंले मे जाने पर अवन्तिका (बडनगर) में स्थित भारती पन्थ अखाडा एंव उसके महन्त स्वामी हीरानन्द भारती से प्राभावित होकर सानिध्य ग्रहण स्वामीजी बने एवं नन्दराम से शिवभारती नाम रखा।

हीरानन्द जी के निर्वाण के बाद शिवभारती महन्त बने, किन्तु साधुओ द्वारा सम्मान नहीं मिलने से पुनः नन्दराम बनकर पण्डित गगांधर से वेद-पुराणों की शिक्षा-दीक्षा एवं संस्कृत का गहन अध्ययन किया।

पुनः जन्मभूमि मण्डारी आएं तथा सम्प्रदाय अखाडे में महात्मा तुम्बीनाथ के शिष्य बनकर गुरू गोरखनाथ एवं मत्स्येन्द्रनाथ के उपदेश एवं सहयोग और समाधि की आत्मज्ञान की प्राप्ति की।

तुम्बीनाथ जी के शिष्य के रूप् में बालीनाथ का नाम प्राप्त कर देश पर्यटन पर जालंधर, गोरखपुर, ओंकारेश्वर, धार, उज्जेन एवं अनेक अन्य जगह सत्संग, साधाना की। पहाडों-कन्दराओं में एकान्त साधना की सात वर्ष बाद वापस अपने गुरू धाम पहुचे एवं तुम्बीनाथ के उतराधिकारी घोषित।

समाज को योगदान-

महर्षि बालीनाथ जी ने मीणा, गुर्जर एवं बैरवा जाति को शिक्षा प्राप्त करने हेतु प्रोत्साहित करने के साथ कृषि पर ध्यान देने तथा सामाजिक कुरीतियों जेसे बाल-विवाह, नुक्ता प्रथा को बन्द करने का आवहान किया एवं सामाजिक, आर्थिक एवं आर्थिक उन्नति की प्रेरणा दी। उस समय शिक्षा, धर्म एवं संस्कारों की चेतना जागृत का वातावरण बनाया जो समाज के लिए अब भी इतिहास में अविस्मरणीय है।

निर्वाण-

समाज के ऐसे सन्त का निर्वाण 56 वर्ष की आयु में माघ सुदी नवमी संवत (सन 1925) में हुआ।

मण्डावरी में बालीनाथ जी की समाधि पर प्रतिवर्ष मेला लगता है एवं 31 दिसम्बर को महर्षि बालीनाथ जयन्ती बैरवा समाज द्वारा पूरे प्रदेश में मनाई जाती है।